लॉक डाउन 4 से 8 हफ्ते तक बढ़ता है, तो देश की करीब 1.7 करोड़ MSME शॉप हो जाएंगी बंद


नई दिल्ली. भारत में करीब 69 मिलियन (6.9 करोड़) माइक्रो, स्मॉल और मीडियम इंटरप्राइजेज यानी एमएसएमई है, जो कि लॉक डाउन के चलते लंबे वक्त से बंद हैं। ग्लोबल अलायंस फॉर मास इंटरप्रिन्योरशिप (GAME) के चेयरमैन रवि वेंकटेसन के मुताबिक अगर देश में लॉक डाउन 4 से 8 हफ्तों बढ़ता है, तो करीब एक चौथाई करीब 1.7 करोड़ एमएसएमई दुकानें बंद हो जाएंगी। ऑल इंडियन मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के आंकड़ों के हवाले से वेंकटेसन ने कहा कि अगर कोरोना संकट चार से आठ माह तक बढ़ता है, तो देश की 19 से 43 फीसदी एमएसएमई भारत के नक्शे गायब हो जाएंगी।



100 मिलियन डॉलर का बनेगा फंड
इंफोसिस के को-चेयरमैन और बैंक ऑफ बड़ौदा के चेयरमैन रहे वेकटेसन ने कहा कि GAME इस संकट की घड़ी में छोटे कारोबार को बचाने के लिए करीब 100 मिलियन डॉलर का फंड बनाने की प्रक्रिया में है। यह फंड अगले दो हफ्ते में जारी किया जा सकता है। इसके तहत छोटे कारोबार के लिए कम ब्याज दर पर लोन दिया जाएगा। भारत के एमएसएमई सेक्टर से करीब 90 फीसदी नौकरियां निकलती हैं, जो लॉक डाउन के बढ़ने पर खत्म हो सकती है। वेंकटेसन की मानें, एमएसएमई के हर सेक्टर नौकरियों की छंटनी हो सकती है। उन्होंने कहा कि 4 करोड़ लोगों को नौकरी देने वाली हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में करीब 1.2 करोड़ नौकरी जा सकती हैं। वहीं 4.6 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाली रिटेल इंडस्ट्री से 1.1 करोड़ नौकरी जा सकती है।



MSME रोजगार देने वाला बड़ा सेक्टर
भारत की कुल वर्कफोर्स में से 93 फीसदी यानी करीब 400 मिलियन लोग मुख्त तौर पर अस्थायी सेक्टर से आते हैं जबकि करीब 93 मिलियन लोगों को सीजनल रोजगार मिलता है। इस सभी कामगारों को कोरोनावायरस की वजह से नुकसान उठाना पड़ रहा है। जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के मुताबिक भारत के अस्थायी रोजगार की बात करें, तो 75 फीसदी लोग स्वरोजगार हैं। यानी रिक्शा, कारपेंटर, पलंबर जैसे काम करते हैं। इन कामगारों को पेड लीव, मेडिकल जैसी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है।



MSME सेक्टर पर सबसे ज्यादा असर
रिसर्चर राकेश के शुक्ला की मानें, तो कोरोनावायरसस की वजह से दिहाड़ी मजदूरों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है। शहरी इलाकों में करीब 25 से 30 फीसदी लोग दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं। देश की करीब 75 मिलियन एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ की इंजन हैं, जो करीब 180 मिलियन नौकरी पैदा करती हैं। साथ ही करीब 1183 बिलियन डॉलर के हिसाब से अर्थव्यवस्था को रफ्तार देती है। इसमें से केवल 7 मिलियन एमएसएमई ही रजिस्टर्ड हैं।